इंसा होकर भी तू
नाली के कीडे को भी
अपना जीवन प्यारा
इंसा होकर भी तू
इस जीवन से हारा
प्राण पड़े जिस तन में
उसमे मोह है जागा
दुखों से डकर क्यों इंसा
रणभूमि से भागा
दुखों से ही तुझको लडना होगा
दुखों की चिता से ही तुझको
अपना घर रोशन करना होगा
हौंसलों का ले सहारा
नाली के कीडे को भी
अपना जीवन प्यारा
जो नर है ना नारी है
उनका संघर्ष जारी है
हौंसलों के आगे
काल ने बाजी हारी है
अब तेरी बारी है
बदलनी रेखाएं काली हैं
मत ढूंढ तू सहारा
तुझको मिलेगा जरूर किनारा
नाली के कीडे को भी
अपना जीवन प्यारा
दुखों के कारण ही इंसा
ईश्वर से जुड़ता नाता है
दुखों से क्यों घबराता है
दुख मुक्ति का दाता है
अपने दामन में भर ले
दुखियों का दुख सारा
नाली के कीडे को भी
अपना जीवन प्यारा
सूरज की तपिश से जो जला है
तरुवर छाया का आनंद उसे पता है
फाको में जिसने दिन है काटे
सूखी रोटियों का आनंद उसे पता है
दुखों की गोद में जो पला है
सुख का आनंद उसे पता है
दुख में रहकर भी जीना
जीवन की एक कला है
यही जीवन का सार है सारा
नाली के कीडे को भी
अपना जीवन प्यारा
इंसा होकर भी तू
इस जीवन से हारा
विपिन बंसल
Niraj Pandey
17-Nov-2021 10:00 AM
बहुत ही शानदार
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Seema Priyadarshini sahay
16-Nov-2021 08:59 PM
बहुत खूबसूरत सच्चाई दर्शाती रचना।
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Swati chourasia
16-Nov-2021 07:28 PM
Very beautiful 👌
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